
प्रखर राष्ट्रवाद न्यूज़ l अवतारी पुरूष महान तपस्वी श्री बाबा सत्यनारायण जी ने (देवरी) डूमरपाली ग्राम के मध्यवर्गीय कृषक परिवार में 12 जुलाई सन् 1984 को पिता श्री दयानिधि, माता श्रीमती हसंमती साहू के घर पुत्र रूप में जन्म लिया। बाबा का नाम हलधर रखा गया। परंतु बाबा के पिता इन्हे सत्यम कहकर पुकारते थे। बाबा जी को बाल्यकाल से ही शिव स्वप्न में दर्शन देने लगे। जिसके बारे में बाबा अक्सर अपनी माँ एवं दादी को बताते थे। एक बार हलधर गाँव के ही शिव मंदिर में 7 दिन और 7 रात तक ध्यान लगाकर शिव उपासना में बैठ गए। उसके बाद बाबा निरंतर अपने ईष्ट देव में ही खोये रहे। शिव के प्रति उनकी आस्था देकखर गांव के बड़े बुढ़े एवं घर परिवार के लोगों ने उन्हे सत्यनारायण नाम दिया। बताया जाता है कि सत्यनारायण 16 फरवरी 1998 को आम दिनों की भांति घर से स्कूल जाने के लिए निकले थे पर स्कूल ना जाकर अपने ईष्ट देव का नाम जाप करने के लिए पूर्व में ईश्वर द्वारा निर्धारित उचित स्थान की तलाश में चल पड़े। पैतृक ग्राम (देवरी) डुमरपाली से 18 कि.मी. दूर कोसमनारा ग्राम के उजाड़ बयावान जगह पर तलाश पूरी हुई और सत्यनारायण ने यही पर अपनी तपस्थली बना डाली। उसी दिन एक पत्थर को शिवलिंग मानकर अपनी जिव्हा अर्पण कर तपस्या में लीन हो गए। लगभग एक सप्ताह बाद एक सेवक ने शिवलिंग के बगल में बाबा जी से आज्ञा लेकर अग्नि (धुनी) प्रज्जवलित कर दिया जो आज अखण्ड धुनि के रूप में निरंतर प्रज्जवलित है। आरंभ में बाबा जी की तपस्या को आम लोगों के द्वारा स्वीकार नहीं किया जा रहा था। कुछ लोगोंं द्वारा परेशान करने एवं बाबा जी को अपने स्थान से उठाने का प्रयास प्रशासन एवं कई लोगों द्वारा किया गया। बाबा जी की तपस्या को देखकर जहां परेशान करने वाले बढ़ रहे थे वहीं श्रद्धालु भक्तों की भी संख्या लगातार बढ़ रही थी। इसी को देखते हुए बाबा जी की 24 घंटा चौकसी होने लगी। बाबा जी के तपस्या की ख्याति धीरे-धीरे चारों ओर फैलने लगी। इसे देख सुनकर आसाम कामाख्या से श्री श्री 108 श्री मौनी कलाहारी बाबा (उम्र 108 वर्ष) भी कोसमनारा, रायगढ़ सत्यनारायण बाबा की तपस्या देखने आये।
बाबा की तपस्या से प्रभावित होकर दिनांक 02.04.2003 से 08.04.2003 तक श्री श्री 108 श्री सत्य चण्डी महायज्ञ किया गया एवं बाबा सत्यनारायण जी को श्री श्री 108 की उपाधि देकर अपने स्व धाम को वापस हो गए। तब से आज तक प्रतिवर्ष उनके अनुयायी यहां कोसमनारा आते है।भारी मात्रा में भक्त जन दर्शन करने आने लगे और मनवांछित फल पाने लगे। निर्माण शरू हुआ, प्रथम कुटिया बनी, फिर पानी की व्यवस्था हुई। धीरे-धीरे बाबा जी का धाम अपना स्वरूप लेने लगा। पत्थरों की जगह शिवलिंग की स्थापना हो गई। धुनि की जगह हवन कुण्ड बना दिया गया। बाबा जी खेत की जमीन पर बैठे थे। भक्तों के अनुरोध पर चबूतरा पर बैठने को राजी हुए। जगत जननी अष्टभूजी दुर्गा माता मंदिर का निर्माण 2009 में पूर्ण हुआ। खुले आसमान के नीचे साधना करते हैं बाबा जी 16 फरवरी 1998 से अब तक तीनों मौसम ग्रीष्म, वर्षा एवं ठंड ऋतु में खुले आसमान के नीचे निरंतर सुबह 7.00 से रात्रि 12.00 बजे तक अपने ईश्वर की साधना में तपस्यारत रहते है। बाबा जी किसी भी भक्तजन से वार्तालाप नहीं करते। बाबा जी प्रतिदिन सुबह 6 से 7 बजे एवं रात्रि 12:30 बजे से 2 बजे तक आने वाले सभी भक्तों से मुलाकात करते है और बाबा जी अपनी बातों को भक्तों से ईशारे से कहते है। शनिवार को बाबा जी अपने भक्तों से रात्रि 12:30 से सुबह 5 बजे तक मिलते है।
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